DHAN KE TIN PRAYOGON KO JANE HINDI ME
इंसान धन बहुत कमाते हैं, लेकिन इनका उपयोग सही मायने में बहुत कम ही लोग जानते हैं और इनका प्रयोग करना भी सही मायने में बहुत कम लोगो को ही आता है। कई बार लोग धन तो बहुत कमा लेते हैं लेकिन धन के साथ – साथ इज्जत नहीं कमा पाते और कई बार ऐसा भी होता है की इज्जत तो होती है पर साथ – साथ इसके धन नहीं होते। धन , दौलत, और इज्जत ये सब इंसान को पाने के लिए और पा लेने के बाद इन्हे बरक़रार रखने के लिए ताकि ये सब कभी ख़त्म नहीं हो, उसके लिए ये जानना जरुरी है की धन का प्रयोग कैसे करें।
दानं भोगं नाशस्तिस्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य ।
यो न ददाति न भुङ्क्ते तस्य तृतिया गतिर्भवति ।।
दानम्, भोगम्, नाशः, तिस्रः गतयः भवन्ति वित्तस्य ।
यः न ददाति, न भुङ्क्ते, तस्य तृतिया गतिः भवति ।।
इन वाक्यों का अर्थ होता है की, संभव नियति धन की तीन प्रकार होती है ।
पहली है उसका दान, दूसरी उसका भोग, और तीसरी है उसका नाश ।
जो व्यक्ति उसे न किसी को देता है और न ही उसका स्वयं भोग करता है, उसके धन की तीसरी गति होती है, अर्थात् उसका नाश होना है।
धन का प्रयोग तीन तरह से होता है। DHAN KA PRAYOG TIN TARAH SE HOTA HAI – MONEY IS USED IN THREE WAYS
(1) भोग / उपभोग – BHOG / UPBHOG – ENJOYMENT :
धन को आवश्यक कार्यों पर व्यय करना चाहिए । यदि आप ‘धन’ को दान करना नहीं चाहते हैं, इस पुण्य कार्य से कतराते हैं। और यह सही बात आप की समझ में नहीं आ रही है या आपके सिर के ऊपर से होकर गुजर रही है तो कोई बात नहीं। धन का उपभोग करिये, धन का सदुपयोग करिये, धन को व्यय करिये मकान, दुकान बनवाइये, मोटर गाड़ी खरीदिये, परिवार की आवश्यक जरूरते को पूरी करें , बच्चों की पढ़ाई पर व्यय करिये, उनकी सुख, सुविधाओं पर भरपूर व्यय करिये, कमजोर नाते-रिश्तेदारों, बहिन, भाई की मदद करिये, वृद्ध माता-पिता की खूब सेवा करिये, उनकी सभी सुविधाओं को हर्षित मन से पूरी करिये और यह सब करके धन का उपभोग करें । ऐसा करके कम से कम अपना यह जन्म तो सफल कर लीजिए! धन को व्यय कर इस जन्म को सुधार लीजिए। अपने परिवार अपने इष्ट-मित्रों के साथ धन बाँटिये, उनके साथ खुशियाँ बाँटिये। और एक बात हम आपको बता दें रहे हैं और आप सभी जानते भी होंगे की, खुशियाँ बाँटने से खुशियाँ प्राप्त होती है। फिर क्यों कंजूसी करें हम खुशियाँ बाँटने में ।
(2) दान – DAAN – DONATION :
दान का संछेप में लाइन है। एक छोटी सी बहुत अच्छी लाइन है किसी ने कहा है की, उसका उसी को देने में क्या महानता है। दान देने से कभी धन या दौलत की कमी नहीं होती। जितना भी हो सके कुछ प्रतिशत अपनी कमाई के २ से ५ प्रतिशत दान जरूर करना चाहिए। चाहे आप मंदिर में करे या चाहे आप मस्जिद में करे या आप गुरूद्वारे में करे या फिर आप किसी गरीब को करे जो आपको दुआ दे सके। ये बात तो जरूर है की यदि आप किसी निःसहाय गरीब को दान देते हो और वो नेक इंसान है तो आपको जीवन भर दुआएं देते रहेंगे। और दुआ दवा से ज्यादा काम आता है। अगर आपको एक अच्छा इंसान और जिंदगी के सबसे ऊपर शिखर पे जाना है अगर आपको सफलता हासिल करनी है तो दान जरूर करे। और ख़ुशी मन्न से करें। और दान दें भी उन्ही को जो जरुरत के लायक हों। वर्ना हम आपको बता दें की निकम्मो का भी इस दुनिया में कमी नहीं है।
(3) नाश / विनाश – NAASH / VINAASH – DISTRUCTION :
धन किसी प्रयोजन के लिए ही अर्जित किया जाना चाहिए । अगर कोई प्रयोजन ही न हो तो वह धन किस काम का फिर बेकार है । जीवन भर ऐसे धन का उपार्जन करके, उसका संचय करके और अंत तक उसकी रक्षा करते हुए व्यक्ति जब दिवंगत हो जाए तब वह धन नष्ट कहा जाना चाहिए । वह किसके काम आ रहा है, किसी के सार्थक काम में आ रहा है कि नहीं, ये बातें यह उस दिवंगत व्यक्ति के लिए कोई माने नहीं रखती हैं । अवश्य ही कुछ जन यह तर्क पेश करेंगे कि वह धन दिवंगत व्यक्ति के उत्तराधिकारियों के काम आएगा ।
तब दो स्थितियों की कल्पना होती है । पहली तो यह कि वे उत्तराधिकारी स्वयं धनोपार्जन में समर्थ और पर्याप्त से अधिक स्व्यमेव अर्जित संपदा का भरपूर भोग एवं दान नहीं कर पा रहे हों । तब भला वे पितरों की छोड़ी संपदा का ही क्या सदुपयोग कर पायेंगे ? उनके लिए भी वह संपदा अर्थहीन सिद्ध हो जाएगी ।
और दूसरी स्थिति यह हो सकती है कि वे उत्तराधिकारी स्वयं अयोग्य सिद्ध हो जाए और पुरखों की छोड़ी संपदा पर निर्भर करते हुए उसी के सहारे जीवन निर्वाह करें । उनमें कदाचित् यह सोच पैदा हो कि जब पुरखों ने हमारे लिए धन-संपदा छोड़ी ही है तो हम क्यों चिंता करें । सच पूछें तो इस प्रकार की कोई भी स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण एवं कष्टप्रद होगी । कोई नहीं चाहेगा कि ऐसी नौबत पैदा हो । तब अकर्मण्य वारिसों के हाथ में पहुंची संपदा नष्ट ही हो रही है यही कहा जाएगा ।
एक उक्ति है: “पूत सपूत का धन संचय, पूत कपूत का धन संचय ।” जिसका भावार्थ यही है कि सुपुत्र (तात्पर्य योग्य संतान से है) के लिए धन संचय अनावश्यक है, और कुपुत्र (अयोग्य संतान) के लिए भी ऐसा धन छोड़ जाना अंततः व्यर्थ सिद्ध होना है ।
धन को कोई भी गति प्रदान करिये या तो धन को दान करिये या फिर धन का उपभोग करिये, यह आपके हित में है और यही आपकी सन्तान के हित में है।