जब दो कण गतिमान हो तो उनमे से किसी एक कण का दूसरे के प्रति आपेक्षिक वेग उसका दूसरा स्थान परिवर्तन की समान्य दर है।
माना कि दो गारियाँ समांतर पटरियों पर बराबर वेग से समान दिशा मे चल रही है प्रत्येक गाड़ी में बैठे हुए यात्री को कुछ भी वेग नही जान पड़ेगा, अर्थात दूसरी गाड़ी विराम मालूम पड़ेगी। अतः इस स्थिति में एक गाड़ी के प्रति दूसरी गाड़ी का आपेक्षिक वेग शून्य। यदि गाड़ी A का वेग 30 मील प्रति घंटा उत्तर की ओर हो तो b में प्रत्येक 10 मील प्रति घंटा की वेग से A को आगे बढ़ते हुए पायेगा, अर्थात b के प्रति A का आपेक्षिक वेग 10 मील प्रति घंटा उत्तर की ओर होगा। किन्तु A से प्रेक्षक को यही प्रतीत होगा की 10 मील प्रति घंटा की वेग से b पीछे की ओर चली जा रही है। अर्थात A के प्रति आपेक्षिक वेग 10 मिल प्रति घंटा दक्षिण की ओर होग़ा।
अतः इससे निम्नलिखित निष्कर्ष निकलता है।
(a) कण b के प्रति कण A का आपेक्षिक वेग A के प्रति b के आपेक्षिक वेग के बराबर और विपरीत है।
(b) प्रेखक सदैव अपने को स्थिर मानकर दूसरे कण की गति का बोध करता है।
(c) जिसकी अपेक्षा वेग प्राप्त करना होता है, उसे स्थिर मन जाता है।
(d) समान्तर चतुरर्भुज के दो समान्तर भुजाएं वास्तविक वेग को निरूपित करता है।
(e) समान्तर चतुर्भुज का विकर्ण आपेक्षिक वेग को निरूपित करता है।
आपेक्षिक वेग का निर्धारण – APEKSHIK VEG KA NIRDHARAN – RELATIVE VELOCITY DETERMINATION :
माना की कागज की अपेक्षा कण A का वेग VA है। और इसे AC द्वारा निरूपित किया जाता है। कागज की अपेक्षा दूसरे कण b का वेग Vb है। और यह BD द्वारा निरूपित किया जाता है।
b के प्रति A का आपेक्षिक वेग भी इसी तरह निकला जाता है।
A के प्रति b का आपेक्षिक वेग प्राप्त करने के लिए A को वेग -VA जो AE द्वारा निरूपित होता है, देकर रोका जाता है, और आपेक्षिक वेगस्थिति को अपरिवर्तित बनाये रखने के लिए b को भी -VA जो BF द्वारा निरूपित होता है। अब कागज की अपेक्षा A विराम में है और b के घटक वेग परिणामी वेग Vb और -VAहै।
अतः A के प्रति b का आपेक्षिक वेग परिणामी वेग Vba है जो वेग समान्तर चतुर्भुज BDGF के विकर्ण BG द्वारा निरूपित होता है।
b को वेग -Vb देकर रोका जाता है और A को भी वेग वेग -Vb दिया जाता है। अब A के घटक वेग -VA और -Vb
परिणामी वेग V है जो b के प्रति A का आपेक्षिक वेग है।
अतः किसी कण के प्रति दूसरे कण के प्रति दूसरे कण का आपेक्षिक वेग निर्धारण करने के लिए दोनों कणों पर पहले कण के वेग के बराबर किन्तु विपरीत वेग दिया जाता है और तब दूसरे कण का परिणामी वेग ही उसका आपेक्षिक वेग होता है।
विशेष परिस्थितियां (SPECIAL CASHES)
(1) जब दो कण समान्तर रेखाओं पर एक ही दिशा में गतिमान है।
माना की दो कण A और b समान्तर रेखाओं पर एक ही दिशा में गतिमान है। और उनके वेग क्रमशः VA और Vb
है। A के प्रति b का आपेक्षिक वेग प्राप्त करने के लिए दोनों कानो को A के बराबर किन्तु विपरीत वेग -VA दिया जाता है। तब A स्थिर हो जायेगा। और b का परिणामी वेग Vb -VA होगा।
अतः A के प्रति b का आपेक्षिक वेग
इसी प्रकार b के प्रति A का आपेक्षिक वेग
(2) जब दो कण समान्तर रेखाओं पर विपरीत दिशा में गतिमान है।
माना की दो कण A और b समान्तर रेखाओं पर विपरीत दिशा में गतिमान है और उनके वेग क्रमशः VA और -Vb
है।
b के प्रति A का आपेक्षिक वेग प्राप्त करने के लिए दोनों कणों को b के बराबर किन्तु विपरीत वेग +Vb दिया जाता है। तब b स्थिर हो जायेगा और A का परिणामी वेग VA + Vb होगा।
अतः b के प्रति A का वेग आपेक्षिक वेग Vb + VA है। इसी प्रकार A के प्रति b का भी आपेक्षिक वेग प्राप्त किया जा सकता है।
आपेक्षिक गति का दैनिक जीवन में निम्नलिखित उदाहरण है।
एक रेल गाड़ी में बैठे यात्री को वृक्ष , मकान , खेत , तार , बिजली के खम्भे, आदि गाड़ी के गति के विपरीत दिशा में चलते दिखाई परते हैं। बरसात के दिनों में यद्यपि वर्षा के बुँदे जमीं पर सीधी गिरती है। तथापि सरक पर चलने वाले को ये तिरछी दिखाई पार्टी है।